बात हाल की है मैं ऑफिस जाने के लिए एक ‘वॉल्वो बस ‘ में बैठी ।बैठते ही टिकट कलेक्टर मेरे पास आया मैंने कहाँ मुझे ‘बेलंदूर पैट्रोल पंप’ तक जाना है और ₹60 दे दिए, मैं जानती थी कि टिकट ₹58 की है ।टिकट कलेक्टर के पास शायद ₹2 चेंज नहीं थे ,तो उसने टिकट के पीछे ₹2 लिखते हुए कहाँ ,’बाद में ले लेना ‘।मैंने यह सोचते हुए टिकट अंदर रख दिया कि ₹2 ही तो है मैं टिकट दिखा नहीं लूंगी और यह सोचते हुए चुपचाप एक किताब निकाली और पढ़ते हुए बैठ गयी । तभी एक विचार मेरे मन में आया, क्यों न टिकट दिखाकर उससे ₹2 मांगे जाएं और उसकी ईमानदारी का पता किया जाए, कही यह मेरे जैसे अन्य यात्रियों को भी चेंज ना देकर बेईमानी कर कमा तो नहीं रहा।मैंने टिकट दिखाई तो उसमें सिर्फ हाथ का इशारा किया, जिसका मतलब था ‘ बाद में ‘। मेरी सोच और पक्की होते जा रही थी मुझे लगा यह शायद उसका रोज का काम है।
इसी कश्मकश में बस आगे बढ़ती गई और मैं यही सोचती रही क्या सच में ईमानदारी खत्म हो गई है दुनिया से ।तभी पीछे से किसी ने मेरे कंधे पर एक उंगली रखी मैंने पीछे पलटकर देखा तो टिकट कलेक्टर ₹2 हाथ में लिए मेरी ओर दे रहा था। मैंने रुपए ले लिए और सोचने लगी क्यों मैं ऐसा सोच रही थी कि लोग धोखा देते हैं क्यों मैंने यह नहीं सोचा कि ईमानदारी आज भी जिंदा है और वह मुझे जरूर मेरे पैसे वापस लाकर देगा ।आज भी ज्यादा लोग ऐसे है जो ईमानदार है ,सिर्फ कुछ बेईमान लोगो की वजह से सभी से धोखे की उम्मीद करना क्या ठीक है ।
आखिर क्यों हम लोगो से ईमानदारी की उम्मीद खोते जा रहे है।
आखिर क्यों ?आखिर क्यों?
मेघा दर्डा