आम होना ही खास है !

चारों तरफ देखती हूं मैं अपने, लोग लिए घूम रहे हैं अपने डिग्रीज का भार।
मैं डॉक्टर हूं इतना पढ़ा है मैंने,लोगों की जान बचाता हूं, है क्या मुस्कुराना जरूरी मेरे लिए, किसी अजनबी को देखकर।
वकील हूं मैं सभी कानूनों को जानता हूं क्या जरूरी है मेरे लिए ,लिफ्ट में मिले किसी अनजान बच्चे को देखकर ‘बेटा कैसे हो पूछना’।
इंजीनियर हूं मैं सभी कोडिंग लैंग्वेजेस जानता हूं ,मालिक हूं चार स्टार्टअप का। क्या जरूरी है किसी जरूरतमंद बूढ़े को रास्ता पार करवाना।
यदि हम सभी इस डिग्रीज के भार को उतार फेके,और बस जाए बन जाए एक ‘आम इंसान’ जो हंसता है मुस्कुराता है और जीवन को जीवन को पूर्ण तरीके से जीने के लिए आतुर है।

– मेघा दर्डा

                                                                          

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